संयुक्त राष्ट्र में जलवायु संकट पर आपात बैठक: दुनिया के सामने बढ़ते खतरे

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10/7/20241 मिनट पढ़ें

संयुक्त राष्ट्र में जलवायु संकट पर आपात बैठक: दुनिया के सामने बढ़ते खतरे

आज, 7 अक्टूबर 2024 को संयुक्त राष्ट्र ने एक आपातकालीन बैठक बुलाई, जिसमें दुनिया भर के नेताओं ने जलवायु संकट से निपटने के लिए तत्काल और ठोस कदम उठाने की बात कही। इस बैठक का आयोजन ऐसे समय में हुआ है जब हालिया रिपोर्ट्स ने दिखाया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण धरती के विभिन्न हिस्सों में आपदाओं की संख्या और तीव्रता में तेज़ी से वृद्धि हो रही है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इस बैठक में कहा कि अगर दुनिया ने अब कार्रवाई नहीं की, तो भविष्य की पीढ़ियों को एक अस्थिर और असुरक्षित दुनिया का सामना करना पड़ेगा।

इस साल दुनिया भर में असामान्य रूप से गर्मी, बाढ़, जंगल की आग, और सूखे जैसी आपदाओं ने जलवायु परिवर्तन की गंभीरता को और स्पष्ट कर दिया है। केवल इस साल के भीतर, कनाडा, अमेरिका और यूरोप के कई हिस्सों में व्यापक जंगल की आग से लाखों हेक्टेयर जंगल नष्ट हो चुके हैं, जबकि दक्षिण एशिया और अफ्रीका में सूखे के कारण खाद्य संकट उत्पन्न हो रहा है। जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक वृद्धि हुई, तो दुनिया भर के कई तटीय शहरों का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।

बैठक में विभिन्न देशों ने अपनी चिंताएँ और सुझाव साझा किए। विकसित देशों ने वादा किया कि वे जलवायु संकट से निपटने के लिए विकासशील देशों को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करेंगे, ताकि वे अपने कार्बन उत्सर्जन को कम कर सकें और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए तैयार हो सकें। इस दौरान यूरोपीय संघ ने घोषणा की कि वे 2030 तक कार्बन न्यूट्रल बनने का संकल्प ले रहे हैं, जबकि अमेरिका ने 2040 तक कोयले से चलने वाले ऊर्जा संयंत्रों को पूरी तरह से बंद करने का लक्ष्य रखा है।

इस आपात बैठक में सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि किस तरह से सभी देश एकजुट होकर इस समस्या का समाधान निकाल सकते हैं। कई विकासशील देशों का मानना है कि वे जलवायु संकट के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार नहीं हैं, लेकिन फिर भी उन्हें इसके सबसे बुरे परिणाम झेलने पड़ रहे हैं। इसको लेकर एक सामूहिक समाधान निकालना बहुत जरूरी है, जिसमें सभी देशों की सहभागिता हो।

साथ ही, बैठक में इस बात पर जोर दिया गया कि जलवायु संकट से निपटने के लिए सिर्फ सरकारों पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं होगा। इसमें प्राइवेट सेक्टर, एनजीओ, और आम जनता की भी भूमिका अहम होगी। इसके लिए सस्टेनेबल उत्पादों का उपयोग, हरित ऊर्जा में निवेश और प्लास्टिक के उपयोग को कम करना जरूरी होगा। बैठक में उपस्थित पर्यावरणविदों का मानना है कि अगर इसी गति से कार्बन उत्सर्जन होता रहा, तो ग्लेशियर पिघलने की गति बढ़ जाएगी, जिससे समुद्र के स्तर में वृद्धि होगी और विश्व के कई हिस्से जलमग्न हो सकते हैं।

इस आपात बैठक के बाद, अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या दुनिया के सभी देश इस गंभीर स्थिति को देखते हुए एकजुट होकर ठोस कदम उठाएंगे। साथ ही, यह भी महत्वपूर्ण होगा कि आगामी संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (COP29) में इन चर्चाओं का कितना असर पड़ता है और क्या दुनिया इस बढ़ते खतरे से निपटने के लिए समय रहते कदम उठाती है।

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